Saturday, March 7, 2009

पूर्ण

(८ मार्च - महिला दिवस के अवसर पर )

पूर्ण

तुम मुझसे डरो !
क्योंकि मैं खुद को रोकना नहीं जानती.
तुम मुझसे डरो !
क्योंकि मैं समस्याओं के टीले पर खडी होकर भी
उन्मादित हो हंसती हूँ.
तुम डरो !
क्योंकि तुम्हारे लाख मारने पर भी
मैं ’कुछ’ प्रसंगों को पल-पल जीती हूँ.
तुम चाहते हो मैं रोती रहूँ.
सुबकती जीऊँ.
हारकर तुम्हें अपनी जरूरत बताऊँ
पर
तुम अब डर जाओ.
क्योंकि, मैं तुम्हारे अनुमान से भी आगे हूँ.
मैं क्षितिज तक जाकर इन्द्रधनुष में छिटकी हूँ.
मैं बह रही हूँ.
मैं कह रही हूँ.
मैं हूँ अपने हीं प्रश्नों का उत्तर.
मैँ अपनी सहेली आप हूँ.
मैं मुझ संग प्रेम प्रलाप हूँ.

-अजन्ता

8 comments:

  1. आपकी कविता पूर्ण पढते हुये मुझे बेहद प्रसन्नता और गर्व का अनुभव हो रहा है, कविता की हर पन्क्तियो मे नारी शक्ति का वह ओज और तेज प्रतिबिम्बित हो रहा है, जिसके लिये भारतीय नारी सदियो से जानी जाती रही और इस पावन धरा पर अपनी शक्ति का अहसास करा पूजी जाती रही है.किसी भी शुभ अथवा मह्त्वपूर्ण कार्य के पहले स्त्रिया शक्ति के रूप मे पूजी जाती रही है, राम ने रावण को मारने के पहले रामेश्वरम के तट पर पहले शक्ति की पूजा की थी . यह हमारी परम्परा है, लेकिन आज पता नही हम कहा जा रहे है?

    मै आपसे ऐसी ही कविताओ की अपेक्षा रखता हू, समाज को जब आप अपने निर्भीक व्यक्तित्व के आईने से देख इस तरह की कविता लिखती है, तो वह कईयो के लिये प्रेरणा स्त्रोत बनता होगा.वैसे यह भारतीय समाज का दुर्भाग्य है कि समाज का दोहरा मापदण्ड स्त्रियो को वह सम्मान का दर्जा आज भी नही दे पाया है, जो उसे मिलना चाहिये.

    तुम मुझसे डरो
    क्योंकि मैं खुद को रोकना नहीं जानती.
    तुम मुझसे डरो
    क्योंकि मैं समस्याओं के टीले पर खडी होकर भी
    उन्मादित हो हंसती हूँ.

    उपरोक्त पन्क्तिया आपके लौह व्यक्तित्व की एक झलक प्रस्तुत करती है,

    तुम डरो
    क्योंकि तुम्हारे लाख मारने पर भी
    मैं 'कुछ' प्रसंगों को पल-पल जीती हूँ.
    तुम चाहते हो मैं रोती रहूँ.
    सुबकती जीऊँ.
    हारकर तुम्हें अपनी जरूरत बताऊँ
    पर
    तुम अब डर जाओ.
    क्योंकि,
    मैं तुम्हारे अनुमान से भी आगे हूँ.

    यह पन्क्तिया जैसे भारतीय स्त्री की शक्ति का अहसास कराती है.

    आपकी इतनी सुन्दर कविता जिसने महिला दिवस पर स्त्री शक्ति को इतने सुन्दर ढन्ग से रेखान्कित किया है, उसके लिये आपको बधाई.

    सादर
    राकेश

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  2. अजंता, कथ्य बेशक शानदार है। पर इस कविता का कमजोर पक्ष है कथ्य को रखने का लहजा। दरअसल, डराने का काम या उम्मीद पुरुष करे या स्त्री सराहनीय तो कतई नहीं है, निंदनीय जरूर हो सकता है।

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  3. "मैं तुम्हारे अनुमान से भी आगे हूँ.
    मैं क्षितिज तक जाकर इन्द्रधनुष में छिटकी ..."

    कितना शक्तिपूर्ण और आत्मविश्वास हैं | भारत की नारियां एइसा होना चाहिए !

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  4. नारी सशक्तिकरण कि जय हो !!!

    बहुत अच्छी लगी रचना.

    किसी भी प्रकार का वर्चस्व सामयिक होता है(कभी कभी अवधि लम्बी अवश्य हो जाती है ) और देश, काल के सापेक्ष भी. वह कभी भी शाश्वत नहीं हो सकता जबकि उसके लिए प्रकृति ने कोई विधान न किया हो.

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  5. Nari shakti ka jo chitran apne kiya hai usse karne ke liye jo aatmik shakti ka chitran aapne kiya uss ke liye aap ko shat shat parnaam.

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  6. This is just great!!
    A tribute as great to the women of world as worthy they are.

    Kudos!!

    Bhole

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  7. मैने आप के कविता पडी और 6 comments भी.अनुराग जी का कहना कि डराना इस कविता का कम्जोर पक्ष है, मै सहमत नही । महिला ललकार सकती है पुरुष को यदि पुरुष उसे गिराने कि कोशिस करेगा । एक महिला ने पुरष को अहसास कराया है कि वह इस भ्रम मे न रहे कि वह मजबूर है । महिला दिवस पर साहित्य प्रेमियों को इससे खूबसूरत उपहार और कुछ नही हो सकता । कविता विषय बस्तु के ड्रिष्टी से बहुत खूबसूरत है । इसकी हर पंक्तियां महिलाओं को शक्ति और जोश भरने के लिए उन्हे अपने डायरी मे लिख लेनी चाहिये ।
    आर.पी. यादव
    लखनऊ

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  8. The real new-age women ... Exellent...
    Bravo! to be brave...

    But I think
    MAN HAS NOT TO BE AFRAID OF THIS WOMAN BUT TO START ACCOMPANYING...

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