Sunday, June 7, 2009

जानवर से आदमी

जानवर से आदमी


एक जानवर
मेरे साथ रहता है.
मेरे बगल मे सोता है.
अपने बदन पर उगी हुई घासें दिखाकर
मुझे उससे चिपकने को कहता है.
उघरी हुई टाँगें दिखाता
पूरे घर में
इधर उधर फिरता रहता है.
सड़ी बदबूदार दांतों के बीच दबाकर
आधी चोकलेट मुझे काटने को कहता है.
अपने खुरदुरे हाथों से
मेरे गालों मे चिमटी काटकर
विजयरस का पान करता है.
चाय सुड़कता है.
चपर-चपर भात खाता है.
और थाली के एक कोने में
अपने मुँह से उगले फेन को
मेरे लिए छोड़ देता है.
जूते के फीते मुझसे बंधवाकर
बड़ी शान से टाई झुलाता
जब घर के बाहर निकलता है...
तब,
पता नही क्यों !
सब उसे
'आदमी' कहकर पुकारने लगते है !