Monday, September 26, 2011

स्ट्रगल फॉर एग्जिस्टेन्स : हिंदी कविता

(Struggle for Existence **)

हथेलियों का अपमान
मेरे गालों पर
अब नहीं जड़ता,
न हीं
अवसादों का कीचड
मेरे वस्त्र को गंदा करता है.
तिरस्कार की चटनी से
मेरी थाल सज जाती है,
मुट्ठी भर घृणा से
मेरा पेट भर जाता है.
अपशब्दों का आब
मेरी तृष्णा को पर्याप्त है,
फब्तियां कसती खिड़कियाँ हैं,
अवहेलित करता चारदीवार है.
गुर्राती शाम की सांकलें हैं,
बदबू मारती रात है.
ठेल, धकेल,
और फर्श की बर्फ,
मेरी रोज की नींद का सामान है.
 

मूलतः
मैं सजीव हूँ.
संवेदनाविहीन,
पर  सक्रिय हूँ.
विषम परिस्थितियों में
सिद्धांतों को प्रतिपादित करती,
बिनलुप्त,
कठजीव हूँ.


-अजन्ता


[** 'स्ट्रगल फॉर एग्जिस्टेन्स' (Struggle for Existence) शब्द , महान वैज्ञानिक डार्विन के विकासवाद का एक सिद्धांत है जो उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ऑरिजिन ऑफ स्पीसीज़ (Origin of Species) से लिया गया है .]