मेरी होली
ये फागुनी नशा है औ बसन्ती है जादू
मेरी आँखें बिन भंग लाल-लाल हो गईं
साजन ने बाहों में भर के रंग डाला
अबके होली में मैं मालामाल हो गई ।
मुझ-हीं से लेके रंग, मुझ-हीं को लगाए
है तू रंग मेरा जो रंग इतने दिखाए
तू तिलक माथे की, मेरे गालों की लाली
कान्हा मेरी गोद तुझसे गुलाल हो गई ।
कोरे आंचल ने मुझको है हर रंग बाँटे
होलिका-सी जो जलके मुझे होली-सी साजे
जिस मरुथल के अश्रु से मैं होती रही तर
उस कोख से जनम कर निहाल हो गई ।
हर-रिश्ता हर-रंग-सा पिचकारी भरा है
जिनकी फुहारों से मेरा आंगन सजा है
ये स्नेह मेरी शान मेरा मान - गुमान
जिसे पाके मेरी हंस-सी चाल हो गई ।