Sunday, March 1, 2009

सूत सी इच्छाएं...

सूत सी इच्छाएं...

रोते रोते
जी चाहता है,
मोम की तरह गलती जाऊं.
दीवार से चिपककर
उसमें समा जाऊं.
पर क्या करुं!
हाड-मांस की हूं जो!
जलने पर बू आती है.
और
सामने खडा वो
मुझसे दूर भागता है.
मेरी सूत सी इच्छाओं को
कोई
उस आग से
खींचकर
बाहर नहीं निकालता.

10 comments:

  1. अद्भुत !!! बहुत अच्छी कविता !!
    पढ़कर स्तब्ध रह गया. पीडा और कतराता का भाव बहुत ही तीब्रता से सम्पेषित हो रहा है .

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  2. सूत सी इच्छायें . सुन्दर शीर्षक और भावप्रद रचना.. आग और सूत... मोम और आग.. विरोधाभास का सुन्दर प्रयोग किया आपने..

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  3. रोते रोते
    जी चाहता है,
    मोम की तरह गलती जाऊं.
    दीवार से चिपककर
    उसमें समा जाऊं.
    पर क्या करुं!
    हाड-मांस की हूं जो!
    जलने पर बू आती है.
    बहुत सुन्दर उपमान दिए हैं। बधाई।

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  4. बहुत उम्दा रचना, अजन्ता!! बधाई.

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  5. sundar bimb prayog...komal bhavabhivyakti..

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  6. bahut gehre bhav bahut badhai

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  7. Ajanta ki gufa ki kalakriti jaisee rachna hai..
    Sahitya ki garima din dooni..raat chowguni badti jayegi.. aapki adbhut kavya rachnaon se..
    Kintu..ek doosra pahloo bhi hai iska..
    Agarbatti..sugandh deti hai..jalne par..
    Heera chamak jata jaii..kharad par
    You are like agarbatti..heera..
    Surabhit rahoo sada sarvada..
    sakhi .." surabhi gupta

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