Saturday, February 28, 2009

तुम मेरे पास हो...

तुम मेरे पास हो...

तुम ख्याल बन,
मेरी अधजगी रातों में उतरे हो।
मेरे मुस्काते लबों से लेकर...
उँगलियों की शरारत तक।
तुम सिमटे हो मेरी करवट की सरसराहट में,
कभी बिखरे हो खुशबू बनकर...
जिसे अपनी देह से लपेट,
आभास लेती हूँ तुम्हारे आलिंगन का।
जाने कितने रूप छुपे हैं तुम्हारे,
मेरी बन्द पलकों के कोनों में.
जाने कई घटनायें हैं
और गढ़ी हुई कहानियाँ.
जिनके विभिन्न शुरुआत हैं,
परंतु एक ही अंत
स्वप्न से लेकर ...उचटती नींद तक...
मेरे सर्वस्व पर तुम्हारा एकाधिपत्य।

4 comments:

  1. समर्पण ------------ओर क्या यही तो भारतीय नारी के प्रेम की ताकत है आपकी कविता में जो एहसास शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है है वह शास्वत है बहुत सुन्दर लिखा गया है
    और गढ़ी हुई कहानियाँ.
    जिनके विभिन्न शुरुआत हैं,
    परंतु एक ही अंत
    स्वप्न से लेकर ...उचटती नींद तक...
    मेरे सर्वस्व पर तुम्हारा एकाधिपत्य।

    ReplyDelete
  2. जब शब्द स्वयं बोलने लगें तब कविता होती है .
    आपके शब्द निर्धारित आकृतियों का चोला उतारकर कर, कथ्य का मूर्त रूप लेकर सामने खड़े हो जाते हैं.
    पाठक के मन को छूते नहीं अपितु समा जाते हैं.

    ReplyDelete
  3. Ajanta nice one ........... adme se janwer is very nice ....All the best . i am unable to write in hindi here ...

    ReplyDelete